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  • Writer's pictureCA Kuldeep Arora

कोरोना (Covid19) - आर्थिक मोर्चे पर भारत के समक्ष चुनौतियां एवं संभावनाएं

Updated: Jun 12, 2020

इस पत्र के माध्यम से कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न हुई परिस्थितियों में भारत के समक्ष आर्थिक मोर्चे पर क्या-क्या चुनौतियां हैं तथा भारत के लिए कौन-कौन सी सम्भावनाएं उत्पन्न होने जा रहीं हैं, इन बिन्दुओं पर विस्तार से चर्चा की जा रही है।


पृष्ठभूमि:

पूरा विश्व इस समय कोरोना (Covid19) नामक महामारी से बुरी तरह से प्रभावित है एवं इससे निजात पाने के लिए जूझ रहा है। माना जाता है कि चीन के वुहान शहर में इस बीमारी का जन्म हुआ और धीरे-धीरे इसने पूरे विश्व को अपने जाल में जकड़ लिया। पहली बार चीन ने 31 दिसंबर 2019 को विश्व स्वास्थ्य संगठन को इस महामारी के बारे में जानकारी दी, लेकिन उस समय तक विश्व को इसकी भयावहता के बारे में पता नहीं था। पूरा चीन विश्व के अन्य देशों की तरह नव वर्ष 2020 के जश्न में डूबा हुआ था। कई चीनी नागरिक नए वर्ष के अवसर पर दूसरे देशों में घूमने के लिए गए। उसके बाद चीन में इस महामारी से संक्रमित लोगों की संख्या तथा मरने वालों का आंकड़ा तेजी से बढ़ने लगा। 30 जनवरी 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना को महामारी घोषित कर दिया। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। विश्व के कई विकसित देश, इटली, स्पेन, फ्रांस, इंग्लैंड, अमेरिका, आदि देशों से भी भारी संख्या में संक्रमित लोगों के वारे में सूचनाएं आनी प्रारंभ हो गईं। दिन प्रतिदिन स्थितियां भयावह होती चली गईं।

भारत में इस महामारी का पदार्पण 30 जनवरी 2020 को हुआ और आज दिनांक 8 जून 2020 को भारत सहित पूरा विश्व इस महामारी से बुरी तरह से प्रभावित हो चुका है। आज इस पत्र को लिखे जाते समय पूरे विश्व में लगभग 70 लाख से अधिक लोग इस महामारी से संक्रमित हो चुके हैं तथा 4 लाख से अधिक लोग काल के गाल में समा चुके हैं। सबसे ज्यादा प्रभावित अमेरिका है, जहां पर आज तक 20 लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं तथा 1 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। भारत में भी आज तक 2.60 लाख लोग इस महामारी से संक्रमित हैं, जबकि 7000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।


जहां एक तरफ विश्व के लगभग सभी देश इस महामारी के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से लड़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर विश्व के लगभग सभी देशों के समक्ष आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है। यह माना जा रहा है कि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद का यह संकट सबसे बड़ा आर्थिक संकट है।


कोरोना (Covid19) से पूर्व की स्थिति:

30 जनवरी 2020 से पूर्व भारत सहित पुरे विश्व में सब कुछ सामान्य था। विश्व के ज्यादातर देशों में तेजी से तरक्की हो रही थी। नए-नए तकनीकी आविष्कार हो रहे थे। लोगों के जीवन स्तर में सुधार हो रहा था। लोग भौतिकतावादी जीवन जीने के आदी हो चुके थे।आवश्यकताओं की वस्तुओं के अतिरिक्त विलासितापूर्ण वस्तुओं का उपयोग भी बढ़ता जा रहा था। फेसबुक व्हाट्सएप, टि्वटर, ईमेल, इंस्टाग्राम जैसे संवाद के साधनों का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा था। नई कारों की बिक्री में कमी आ चुकी थी, क्योंकि लोग अब ऊबर, ओला जैसी सुविधाओं का प्रयोग करके एक से एक बढ़िया कारों में घूमने का लुफ्त ले रहे थे। विश्व यात्राएं एक आम बात हो चुकी थी। सड़क, जल, वायु, रेल सभी यातायात के साधनों में भारी भीड़ थी। 80 के दशक में कमरे के बराबर के कंप्यूटर की जगह अब लैपटॉप, पामटॉप और मोबाइल ने ले ली थी। एमाजाॅन, फ्लिपकार्ट, ईबे, अलीबाबा जैसी ई-कॉमर्स कंपनियां ऑनलाइन घर बैठे ही नई-नई वस्तुएं घर-घर उपलब्ध करा रही थीं। जोमैटो, फूडपांडा, स्विगी, ऊबरईट्स आदि के माध्यम से अब आप 24 घंटे कुछ भी खाने पीने की चीजें घर पर मंगा सकते थे। संचार क्रांति के युग में सब कुछ बदल सा गया था। वैश्वीकरण के दौर में वसुधैव कुटुंबकम की भावना का एहसास होने लग गया था।


आर्थिक मोर्चे पर भी तरक्की का दौर चल पड़ा था। विश्व की कुल अर्थव्यवस्था मार्च 2020 में अनुमानित 90.87 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच चुकी थी। इसी अवधि में भारत की अर्थव्यवस्था भी 3.20 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गई। व्यापार देश की सीमाओं को लांघ कर अंतर्देशीय हो चुका था। पूरा यूरोप मिलकर यूरोपियन यूनियन बन चुका और एक ही मुद्रा का प्रयोग कर रहा था। विश्व के किसी भी कोने में होने वाली घटना का प्रभाव पूरे विश्व पर पड़ने लगा था। पुरानी विकसित अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ते हुए विकासशील देश प्रगति के पथ पर आगे निकलने लगे थे। भारत भी 2020 के आते-आते विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका था। पूरे विश्व में विकासशील देश वस्तुओं के उत्पादन एवं सेवा प्रदान करने के हब बन चुके थे। इससे पूरे विश्व का आर्थिक परिदृश्य बदलने लगा था। इंग्लैंड, अमेरिका जैसे देश, जो किसी समय औद्योगिक क्रांति के जनक बने थे, पिछड़ने लगे थे। उनका स्थान चीन, भारत, जापान, बांग्लादेश, वियतनाम, श्रीलंका, दक्षिण कोरिया, ताइवान जैसे देशों ने ले लिया था। इसका सबसे बड़ा कारण विकसित देशों में श्रमिकों का महंगा होना, जबकि विकासशील देशों में श्रमिकों का सस्ता होना था। इससे विकासशील देश सस्ते उत्पाद पूरे विश्व को उपलब्ध करा रहे थे। इसका नतीजा यह हुआ कि सस्ता खरीदने की चाह में विकसित देशों ने विकासशील देशों के उद्योगों में पूूँजी का विनियोजन करना प्रारंभ कर दिया। इससे विकासशील देशों में नए-नए उद्योगों की स्थापना होने लगी, जबकि विकसित देशों के उद्योग धंधे बंद होने के कगार पर आ गए। सॉफ्टवेयर क्रांति तथा शैक्षिक-तकनीकी-प्रशिक्षित लोगों की उपलब्धता के कारण विकासशील देश सेवा प्रदान करने में भी अग्रणी हो गए। इसी कारण से चीन एवं भारत भारत जैसे विकासशील देश प्रगति की रफ्तार में काफी आगे निकल गए। इसका परिणाम यह निकला कि विकासशील देशों में रोजगार की स्थिति बेहतर होने लगी, वहीं दूसरी ओर विकसित देशों में बेरोजगारी बढ़ने लगी।


जनता के आक्रोश को देखते हुए पिछले कुछ वर्षों से विकसित देशों की धारणा बदलने लगी थी। उनकी समझ में आने लगा था कि विकासशील देशों के आगे बढ़ने का कारण विकसित देशों में बंद होने वाले उद्योग थे। इसके बाद कुछ वर्षों से विकसित देेशों में राष्ट्रवाद की भावना प्रबल होने लगी थी। अमेरिका, इजरायल, इंग्लैंड जैसे देश राष्ट्रवाद की अवधारणा पर चलने के लिए बाध्य होने लगे थे। यह स्थिति वैश्वीकरण की अवधारणा के बिल्कुल विपरीत थी। इसी भावना के चलते इंग्लैंड यूरोपियन यूनियन से अलग हो गया तथा अमेरिका के राष्ट्रपति पद के चुनाव में राष्ट्रपति ट्रंप की विजय हुई। इसके अतिरिक्त छोटे-छोटे देशों जैसे ताइवान, वियतनाम, श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि ने भी उदारीकरण का रास्ता अपनाकर विकसित देशों के लोगों को अपने यहां पर उद्योग धंधा लगाने के लिए आमंत्रित करना प्रारंभ कर दिया था। यह देश उदार करनीति एवं सस्ते श्रमिकों एवं स्थानीय कृषि उत्पादों की अधिकता के चलते चीन एवं भारत जैसे देशों को कड़ी टक्कर देने लगे थे। इसका सबसे बड़ा प्रभाव यह हुआ कि चीन और भारत जैसे देशों से पूंजी का पलायन नव विकासशील देशों की ओर होने लग गया। इसी कारण से चीन और भारत की सकल घरेलू उत्पादन वृद्धि दर घटने लगी और नव विकासशील देश तेजी से तरक्की करने लगे।


भारत ने पिछले कुछ वर्षों में व्यापार को सुगम बनाने के लिए बहुत सारे कदम उठाए हैं। कई बरसों पुराने कानूनों को समाप्त कर दिया गया। काले धन पर लगाम लगाने हेतु कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए। कई अप्रत्यक्ष कर कानूनों के स्थान पर एक कानून, वस्तु एवं सेवा कर लाया गया। किंतु बदलते हुए वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में यह प्रयास नाकाफी साबित हुए और भारत की सकल घरेलू उत्पादन वृद्धि दर 8% से गिरकर लगभग 4% पर आ गई। काले धन को समाप्त करने के लिए लाई गई नोटबंदी तथा वस्तु एवं सेवा कर के सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं होने के कारण देश को काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा। कर-आतंकवाद, प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष करों के प्रावधानों में जटिलता, जांच एजेंसियों की अति सक्रियता तथा देश के व्यापारियों पर देश की सरकारों एवं प्रशासनिक अधिकारियों के अविश्वास की भावना तथा देश की न्याय व्यवस्था का जटिल होना देश के लिए हानिकारक साबित होने लगा। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया ने भी सस्ती टीआरपी की चाह में मीडिया ट्रायल करके विदेशी निवेशकों को सोचने पर मजबूर किया है। इन सभी कारणों से देश में विदेशी पूंजी का प्रवाह अवरुद्ध होने लगा और हमारे यहां के उद्योगपति दूसरे देशों में व्यापारिक गतिविधियां प्रारंभ करने के लिए बाध्य हो गए।



कोरोना (Covid19) के मध्य की स्थिति:

क्या किसी ने चार माह पहले यह सोचा था कि एक दिन ऐसा भी आएगा कि पूरा विश्व स्थिर हो जाएगा। सभी देशों में लॉक डाउन जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। आज पूरा विश्व कोरोना महामारी के कारण थम सा गया है। संक्रमित लोगों एवं संक्रमण से मरने वाले लोगों के दिन प्रतिदिन बढ़ने वाले आंकड़े डराने वाले लगते हैं। लोग घरों में बंद हैं। उद्योगों में उत्पादन बंद हो चुका है। लोग स्वास्थ्य एवं सफाई के प्रति बहुत जागरूक हो गए हैं। मेलजोल एवं भाईचारा जैसी बातें सामाजिक दूरी जैसे नारों में तब्दील हो गई हैं। चार महीने में जैसे सब कुछ बदला-बदला सा लगने लगा है। करोड़ों काम करने वाले हाथ बेकार हैं। चारों तरफ बेरोजगारी और भुखमरी फैली हुई है। पूरे देश में परेशान बेहाल पैदल घर की ओर पलायन करने को मजबूर श्रमिकों की तस्वीरें मन को उद्वेलित कर देतीं हैं। केंद्र, राज्य सरकारें एवं अनेकों समाजसेवी संगठन लोगों को भोजन, दवाएं एवं आवश्यक सामग्री बांटने का कार्य कर रहे हैं। लेकिन उसके बावजूद भी दूरदराज के इलाकों में पर्याप्त सहायता नहीं पहुंच पा रही है। चारों तरफ निराशा का माहौल व्याप्त है। भारत में दूसरे देशों को देखते हुए संक्रमित लोगों की संख्या और संक्रमण से मरने वालों की दर काफी कम है। लेकिन यह आंकड़ा धीरे-धीरे बढ़ रहा है। अब भारत संक्रमित लोगों की संख्या के मामले में विश्व में छठे स्थान पर पहुंच चुका है। हमारे यहां की जनसंख्या और उसके घनत्व को देखते हुए संक्रमण की दर कम होना संतोष की बात है। भारत में केंद्र सरकार द्वारा 25 मार्च से 30 जून तक कई चरणों में लॉक डाउन की घोषणा की गई है। अभी हाल ही में 1 जून से चरणबद्ध तरीके से लॉक डाउन को धीरे-धीरे खोला जा रहा है।


लॉक डाउन के काफी सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले हैं। इसके कारण एक तरफ तो हमारी सरकार को इस आपात स्थिति से निपटने का पर्याप्त समय प्राप्त हो गया और दूसरी ओर संक्रमण की दर को नियंत्रित रखने में भी सफलता प्राप्त हुई है। हमारे डॉक्टर, नर्सेस, पैरामेडिकल स्टाफ, सुरक्षाकर्मी सभी लोग विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी जान की परवाह न करते हुए इस महामारी से लड़ने का प्रयास कर रहे हैं।


वर्ल्ड बैंक के अनुमान के अनुसार इस महामारी के कारण भारत को प्रत्येक दिन 4.5 बिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ सकता है। उद्योगों की हालत बहुत ज्यादा खराब हो गई है। वेतन बांटने और ब्याज का भुगतान करने के लिए उद्योगों के पास धनराशि नहीं है। इस महामारी का सबसे ज्यादा असर किसानों और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों पर पड़ा है। किसानों के खेतों में पैदा होने वाली सब्जियां, फल, फूल आदि खेतों में पड़े-पड़े ही खराब हो रहे हैं। भारत के अन्नदाता, लघु उद्योग एवं छोटे व्यावसायी पाई-पाई का मोहताज हो चुके हैं। केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक ने कई प्रकार के राहत पैकेज की घोषणा की है। लेकिन अभी तक की गई घोषणाएं पर्याप्त नहीं है। सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले उद्योग भवन निर्माण, ऑटोमोबाइल्स, होटल, रेस्टोरेंट, यातायात आदि हैं। उद्योगों को एक बड़े राहत पैकेज का इंतजार है, जिससे उन्हें दोबारा खड़े होने में मदद मिल सके। अगर जल्दी ही ऐसा नहीं होता है तो हालात और भी ज्यादा बदतर हो जाएंगे।



लेकिन इस दौरान कई सकारात्मक परिवर्तन भी दिखाई दिए हैं। वातावरण शुद्ध हुआ है, नदिया साफ दिखाई देने लगी हैं, वन्य जीव एवं जलचर स्वछन्द रूप से विचरण करते हुए नजर आ रहे हैं। ओजोन लेयर भी अब भरने लगी है। कई किलोमीटर दूर से बर्फ से ढकी हुई पहाड़ों की चोटियाँ दिखाई देने लगी है। ऐसा लगता है जैसे प्रकृति इंसानों से कह रही हो कि तुमने विकास के नाम पर जो विनाश किया है, उसको रोकने का वक्त आ चुका है।


लोगों के व्यवहार में भी अकस्मात ही सकारात्मक परिवर्तन दिखाई देने लगे हैं। लोग परिवार के साथ घर में वक्त बिता रहे हैं। किताबें पढ़ रहे हैं। लोगों का कला एवं संगीत के प्रति प्रेम विकसित हो रहा है। टेक्नोलॉजी का भरपूर इस्तेमाल हो रहा है। लोग घर पर इंटरनेट के माध्यम से ऑफिस का कार्य करना सीख रहे हैं। मीटिंग, सेमिनार आदि का आयोजन ऑनलाइन हो रहा है। इंसान मुश्किल हालात में जिंदा रहना सीख रहा है। मंदिर बंद है, तो भक्त भगवान के दर्शन ऑनलाइन कर रहे हैं। पंडितों के द्वारा कई प्रकार के संस्कार, हवन, यज्ञ देश-विदेश के भक्तों के साथ ऑनलाइन घर पर बैठकर ही करवाए जा रहे हैं। संदेश साफ नजर आ रहा है कि हमें इस मुश्किल जंग को जीतना ही हैI



कोरोना (Covid19) के पश्चात उत्पन्न होने वाली अनुमानित स्थिति:

यह तो निश्चित नहीं है कि इस महामारी का प्रकोप कब तक रहेगा। लेकिन यह निश्चित है कि जब इस महामारी का अंत होगा, तो कुछ भी पहले जैसा नहीं रहने वाला है। काफी कुछ बदल जाएगा। काफी समय तक लोग सामाजिक दूरी बनाकर रहेंगे। शादी-विवाह, धार्मिक आयोजन, पूजा, मेले इत्यादि में भीड़ एकत्रित नहीं होगी। लोग सार्वजनिक वाहनों, बस, ट्रेन, हवाई जहाज आदि में यात्रा करने से बचेंगे। लोगों की विदेश यात्राएं, पिकनिक, मौज-मस्ती, मॉल में शॉपिंग, सिनेमाघर, होटल, रेस्टोरेंट आदि में जाने वाली आदतें बदल जाएंगी। महामारी के अंत के बाद कई प्रकार के ऑफिसों में कर्मचारियों का प्रतिदिन उपस्थित रहना बंद हो जाएगा लोग घर पर बैठकर ऑनलाइन काम करने लगेंगे। ऑनलाइन शॉपिंग, ऑनलाइन बैंकिंग जैसी कई आर्थिक गतिविधियां सुगम तरीके से प्रारंभ हो जाएंगी। लोग अनावश्यक रूप से बाहर निकलने में संकोच करेंगे।


महामारी के कारण बर्बाद हुई अर्थव्यवस्था को संभालने में काफी वक्त लगेगा। बेरोजगारी और आर्थिक तंगी से त्रस्त मजदूरों का विश्वास वापस लौटाना कोई आसान काम नहीं होगा। बेरोजगारी बढ़ने से वस्तुओं और सेवाओं की मांग में भारी गिरावट आएगी, जिसका सीधा असर उद्योगों की उत्पादन क्षमता पर पड़ेगा। उद्योग कम क्षमता के साथ काम करने को मजबूर होंगे। जिससे बेरोजगारी और बढ़ेगी तथा विश्व आर्थिक मंदी के कुचक्र में फंस जाएगा। विकास अवरुद्ध हो जाएगा। कई देशों में आंतरिक वर्ग संघर्ष की स्थितियां उत्पन्न होंगी। कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के मध्य आर्थिक हितों को लेकर टकराव की स्थिति पैदा हो जाएगी। कोरोना से पूर्व के स्तर पर पहुंचने के लिए विश्व के देशों को कम से कम 3 वर्ष लगेंगे और कई देशों को तो इस संकट से उबरने में और भी ज्यादा वक्त लग सकता है।



आर्थिक मोर्चे पर भारत के समक्ष उत्पन्न होने वाली चुनौतियां एवं संभावनाएं:

पूरे विश्व की भांति ही भारत भी इस महामारी के प्रकोप से अछूता नहीं रहा है। चारों तरफ निराशा का माहौल है। लाॅकडाउन आंशिक तौर पर खुल चुका है, लेकिन महामारी से संक्रमित लोगों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है तथा जुलाई के अंत तक इसके उच्चतम स्तर पर पहुंचने की संभावना है। हमारे देश में केंद्र और राज्य सरकारों के मध्य समन्वय का अभाव दिखाई दे रहा है। संकट की इस घड़ी में देश की खातिर एक इकाई की तरह खड़े होने के स्थान पर हमारे नेता एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश में लगे हुए हैं। संकट के समय में देश के लोगों में विश्वास की बहाली सबसे बड़ी चुनौती होगी। उन्हें इस बात का विश्वास दिलाना होगा कि महामारी का असर हमारे देश में इतना भयावह नहीं है, जितना कि दूसरे अन्य देशों में दिखाई पड़ रहा है। लोगों में सफाई एवं स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा करना भी एक बड़ी चुनौती है। लोगों को पर्याप्त सुरक्षा के साथ दोबारा दोबारा काम पर वापस लाने के लिए भागीरथ प्रयास करने पड़ेंगे।


भारत के समक्ष बड़ी आर्थिक चुनौतियां भी मुंह बाएं खड़ी हुई हैं। देश पहले ही मंदी से जूझ रहा था। ऐसे में कोरोना महामारी ने आग में और घी डालने का काम किया है। अधिकांश लघु एवं मझोले मझोले उद्योगों के पास ब्याज, वेतन का भुगतान करने के लिए धनराशि नहीं है। उनको मिले हुए पूर्व के आर्डर रद्द हो चुके हैं। नए आर्डर मिल नहीं रहे हैं। देनदारों से बकाया राशि प्राप्त नहीं हो रही है तथा लेनदारो एवं बैंक को चुकाने के लिए धनराशि नहीं है। गोदामों में स्टॉक भरा हुआ है। सप्लाई चैन पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है। ऐसे में मांग और पूर्ति में उचित समन्वय स्थापित करना एक बड़ी चुनौती है। रियल एस्टेट, टूरिज्म, ऑटोमोबाइल्स, यातायात जैसे बड़े उद्योग, जिनमें ज्यादा लोगों को रोजगार मिलता है, तबाही के कगार पर हैं। अगर इन उद्योगों को जल्दी ही कोई राहत पैकेज नहीं मिला, तो हालात और भी बदतर हो जाएंगे।


बच्चों की शिक्षा एवं उनको नए रोजगार की उपलब्धता एक बहुत बड़ी चुनौती है। महामारी के कारण शिक्षण संस्थान बंद हैं। कक्षाएं नहीं लग रही है। नियमित होने वाली परीक्षाएं नहीं हो पाई हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं का हो पाना फिलहाल असंभव सा लग रहा है। बड़े शहरों में शिक्षा संस्थानों ने ऑनलाइन क्लासेस एवं परीक्षाओं को आयोजित करने की व्यवस्था आरंभ की है, लेकिन छोटे शहरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह की प्रणाली स्थापित करना एक बड़ी चुनौती है। एक तरफ शिक्षा व्यवस्था अधिकांशतः बंद है एवं नई कक्षाओं के प्रारंभ होने की कोई निश्चित समय सीमा नजर नहीं आ रही है, वहीं दूसरी ओर शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले करोड़ों शिक्षकों एवं अन्य कर्मचारियों के समक्ष नौकरी का संकट खड़ा हो गया है। कई प्राइवेट शिक्षण संस्थान बंद होने के कगार पर पहुंच गए हैं। नव शिक्षित बेरोजगारों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ने का खतरा पैदा हो गया है।


वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए सरकार का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों का संग्रहण अनुमान से काफी कम है। वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए भी जो संकेत सामने आ रहे हैं, उनके अनुसार उद्योगों में उत्पादन कम होने तथा बेरोजगारी बढ़ने के कारण इस वित्तीय वर्ष के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों में भारी गिरावट होने की संभावना है। इससे विकास के कई कार्य प्रभावित होंगे। देश की रक्षा आवश्यकताओं के लिए उपलब्ध बजट में भारी गिरावट आएगी, जिससे सीमाओं पर तथा देश की आंतरिक सुरक्षा संबंधी परेशानियां पैदा होंगी। विश्व की कई रेटिंग एजेंसीज के मुताबिक भारत की सकल उत्पाद वृद्धि दर वित्तीय वर्ष 2020-21 में नकारात्मक रह सकती है। इससे बेरोजगारी का संकट और बढ़ जाएगा एवं देश के और अधिक मंदी में डूबने का खतरा बढ़ जाएगा।


आर्थिक चुनौतियों के अतिरिक्त कई सामाजिक चुनौतियां भी पैदा होने की संभावना है। बेरोजगारों की बढ़ती संख्या एवं औद्योगिक संकट समाज में विषमता एवं वैमनस्यता पैदा करेगा। बढ़ती निराशा एवं कुंठा आत्महत्या जैसी परिस्थितियों को पैदा करेंगी। देश में आतंकवाद, नक्सलवाद, चोरी, डकैती, मारपीट, दंगा-फसाद आदि घटनाओं में भारी वृद्धि होगी। इससे देश की आंतरिक सुरक्षा को बड़ा खतरा उत्पन्न होगा।


जहां एक और लघु अवधि में कई प्रकार की चुनौतियां नजर आ रही हैं, वहीं दूसरी ओर दीर्घावधि में भारत के समक्ष कई नए-नए अवसर भी दिखाई देने लगे हैं। इस महामारी के नियंत्रण में आने के बाद विश्व का आर्थिक परिदृश्य बदलने वाला है। चीन के प्रति विश्व के अधिकांश देशों के मन में घृणा का भाव पैदा हो गया है। चीन के आर्थिक बहिष्कार की भावना देश में तथा विश्व के अन्य देशों में भी बलवती होने लगी है। कई बड़ी कंपनियां चीन से अपने उद्योगों को समेट कर अन्य विकल्पों को तलाश रहीं हैं। ऐसे में भारत के समक्ष एक बड़ा अवसर उत्पन्न होने के लिए तैयार है। भारत निश्चित तौर पर ऐसी कंपनियों के लिए प्रथम विकल्प होगा। भारत में शिक्षित-प्रशिक्षित लोगों की उपलब्धता तथा हाल ही में सरकार द्वारा नई औद्योगिक इकाइयां स्थापित करने के लिए की गई करों में रियायतों की घोषणा इस कार्य में बहुत ही सहायक सिद्ध होगी। भारत के द्वारा संंकट के समय विश्व के अनेक देशों को आवश्यक दवाओं की उपलब्धता ने उन देशों के मन में भारत के प्रति आदर का भाव उत्पन्न कर दिया है।


लेकिन इस सुनहरे अवसर को पूरी तरह से भुनाने के लिए कई बड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। वरना विश्व के अन्य दूसरे देश भी इस अवसर को लपकने के लिए बाहें फैलाए तैयार बैठे हैं। विश्व की बड़ी औद्योगिक इकाइयों के लिए यह महामारी अवसर भी उत्पन्न करेगी। बड़ी-बड़ी कंपनियां डूबती हुई छोटी कंपनियों का अधिग्रहण करके अपने साम्राज्य को और अधिक विस्तार देने की कोशिश करेंगी। सरकार को एक तरफ तो विश्व की बड़ी-बड़ी कंपनियों को अपने यहां व्यापार करने के लिए आमंत्रित करने की चुनौती है, वहीं दूसरी ओर अपने यहां के डूबते हुए उद्योगों को इन बड़ी कंपनियों की नजर से बचाना और भी बड़ी चुनौती है। भविष्य में यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि हमारी सरकार इस दिशा में क्या कदम उठाती है।



सार्थक सुझाव:

एक कहावत है कि जो हो चुका है उसके बारे में सोचने से क्या लाभ। हमें अपनी पुरानी गलतियों तथा कमियों से सबक लेकर आगे बढ़ना है। हमें यह देखना होगा कि हमारे सिस्टम में कहां-कहां खामियां हैं तथा उनको कैसे सुधारा जा सकता है। पुरानी व्यवस्थाओं में सुधार लाने एवं नए अवसरों का लाभ उठाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव निम्न प्रकार है:


1. सबसे पहले संकट के समय में देश के प्रत्येक नागरिक को सारे मतभेद भूलकर देश हित में कार्य करने का संकल्प लेना चाहिए। हम पहले भारतीय हैं। बाद में किसी धर्म, जाति,भाषा, रंग, नस्ल, अथवा किसी राजनीतिक पार्टी से संबंधित हैं। इसके लिए हमारे नेताओं को सबको साथ में लेकर चलने की नीति अपनानी होगी। देश के नागरिकों में समन्वय स्थापित करना होगा।


2. हमें अपने देश में विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं स्थापित करनी पड़ेगी। देश के प्रत्येक जिले में आधुनिक तकनीक से युक्त अस्पताल स्थापित करने होंगे। नए आधुनिक मेडिकल कॉलेज, लैबोरेट्री, रिसर्च सेंटर स्थापित करने होंगे। देश में वैज्ञानिक रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए देश के कॉलेजों को पर्याप्त धन एवं संसाधन उपलब्ध कराने होंगे। देश के शिक्षण संस्थानों को आधुनिक एवं सुविधा संबंध बनाना होगा। वैज्ञानिक शिक्षा पर जोर देना होगा हमें देश में और अधिक वैज्ञानिक बनाने होंगे तथा नए अविष्कारों पर ध्यान देना होगा। अमेरिका, जापान, इजराइल जैसे देश वैज्ञानिक आविष्कारों के बदौलत ही दुनिया पर अपनी धाक जमाए हुए हैं।


3. देश के सभी नागरिकों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य को मुफ्त कर देना चाहिए। इसके लिए देश के प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष करों की एक निश्चित दर इन पर व्यय करने की व्यवस्था करनी चाहिए।


4. देश में ईमानदार करदाता को उचित सम्मान किया जाना चाहिए। प्रत्येक करदाता चोर नहीं है, यह बात सरकार और संबंधित विभागों को समझनी होगी। व्यापारियों एवं उद्योगपतियों पर विश्वास करना होगा। बदले की भावना से बचना होगा। नकारात्मक विचारधारा हमेशा देश के लिए घातक होती है।


5. देश के लघु एवं मझोले उद्योगों को 1 वर्ष के लिए ब्याज रहित कार्यशील पूंजी ॠण उपलब्ध कराए जाने चाहिए। जो भी पुराने सावधि ऋण बैंकों द्वारा दिए गए हैं, उनका पुनर्निर्धारीकरण किया जाए तथा 1 वर्ष तक कोई भी किस्त नहीं ली जाए।


6. प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों की जटिलता को समाप्त करके उनका सरलीकरण किया जाना चाहिए तथा विभिन्न प्रकार के फॉर्मस को जमा करने की प्रक्रिया को आसान किया जाना चाहिए।


7. सरकार को यह समझना होगा कि छोटे उद्योग एवं व्यापार इस देश की अर्थव्यवस्था की जान है। वही देश में सबसे ज्यादा रोजगार का सृजन करते हैं। उन्हें संरक्षित करने तथा उनका विकास किए जाने के लिए उचित कदम उठाए जाने की व्यवस्था की जानी चाहिए।


8. देश के नागरिकों के हाथों में धनराशि की तरलता सुनिश्चित करने की तुरंत आवश्यकता है। इससे मांग की समस्याओं से त्रस्त उद्योगों में उत्पादन बढ़ेगा और रोजगार की समस्या का भी समाधान किया जा सकेगा।


9. देश के आधारभूत ढांचे का विकास करने का सबसे उपयुक्त समय यही है। देश के उपलब्ध सभी संसाधनों का प्रयोग आधारभूत संरचना के विकास के लिए किया जाना चाहिए। संकट काल में पूर्व में सभी विकसित देशों ने ऐसा ही किया है। प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी ने अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सड़कों का जाल बिछा दिया था। चीन द्वारा आधारभूत ढांचे में किए गए विनियोग का लाभ सभी को स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इससे एक तरफ तो देश के आधारभूत ढांचे का विस्तार होगा, वहीं दूसरी ओर हम ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार देकर देश की जनता को गरीबी से मुक्त कर सकते हैं।


10. देश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए निर्णायक कदम उठाए जाने के लिए यही उपयुक्त समय है। बढ़ती हुई जनसंख्या के आगे देश में होने वाला विकास नगण्य लगता है।


11. देश के प्रत्येक प्रदेश में उस प्रदेश में उपलब्ध संसाधनों के आधार पर कम से कम 5 बड़े औद्योगिक क्षेत्र विकसित किए जाने चाहिए। वहां पर लगाए जाने वाले उद्योगों को कम से कम 10 वर्ष तक करों में रियायत दी जानी चाहिए। इससे एक और तो देश के नागरिकों को अपने घर-परिवार के समीप ही रोजगार प्राप्त होगा, वहीं दूसरी ओर देश के वर्तमान महानगरों पर पड़ने वाला बोझ कम होगा।


12. देश के किसानों को उनकी फसल की लागत का 1.5 गुना मूल्य सुनिश्चित करना होगा। किसानों को कृषि की आधुनिकतम तकनीक, उत्तम बीज एवं खाद की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। सिंचाई के साधन बढ़ाने होंगे। किसानों को सस्ता ॠण दिलाने की उचित व्यवस्था करनी होगी। उनको साहूकारों के चंगुल से मुक्त कराना होगा। सस्ती दर पर बीमा उपलब्ध कराने की व्यवस्था करनी होगी एवं फसल का नुक्सान होने पर फसल के विक्रय मूल्य के बराबर मुआवजा दिलाने की व्यवस्था करनी चाहिए।


13. देश से प्रतिभा पलायन को रोकने के लिए उचित प्रयास किए जाने चाहिए। इसके लिए आरक्षण को चरणबद्ध तरीके से हटाया जाना चाहिए।


निष्कर्ष:

इंसान के हौसले के आगे कोई भी समस्या बड़ी नहीं होती। पूर्व की भांति ही हमारा देश भी इस भीषण समस्या पर जल्दी ही जीत हासिल कर लेगा। जल्द ही हम पहले की ही तरह विकास के पथ पर तेजी से अग्रसर होंगे। इसके लिए हमें वर्तमान में और भविष्य में सावधानीपूर्वक कदम उठाने होंगे। यह निश्चित है कि 21वीं सदी भारत की होगी और हम विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनेंगे। हर रात के बाद सुबह होती है। देश के हर नागरिक को यह प्रण लेना होगा कि वह देश के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करेगा और ना ही किसी को करने देगा। देश के नागरिकों में समन्वय स्थापित करना होगा। विघटनकारी शक्तियों के मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा। प्रत्येक नागरिक को देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को बखूबी समझना होगा। ईमानदारी के साथ कार्य करना होगा तथा ईमानदारी से टैक्स देना होगा। हमें अपने देश की सांस्कृतिक विरासत को सहेजना होगा। हमें दुनिया के सामने गर्व से कहना होगा कि हम भारतीय हैं और भारत एक महान देश है।


लेखक का विवरण:

लेखक कुलदीप कुमार अरोड़ा एक कार्यकारी चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं तथा देश के आर्थिक एवं सामाजिक मुद्दों पर अच्छी पकड़ रखते हैं। इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके स्वयं के अपने हैं।

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